Monika garg

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लेखनी कहानी -13-May-2022#नान स्टाप चैलेंज # मजबूरी

बारिश..एक ऐसा मौसम जिससे शायद सभी को प्यार होता है। गर्मी से लगातार तपती धरती और परेशान होते प्राणी बारिश के आते ही खिल उठते हैं। बारिश की पहली बूंद हर किसी को जैसे तृप्त कर देती है| कोई भीगकर तो कोई बरसती बूंदों को पाकर खुद को खुश कर लेता है। यूं तो बारिश एक जरूरत है लेकिन जब बारिश अति करती है तो जीना मुहाल कर देती है। कुछ ऐसा ही इस माँ के साथ भी हुआ है।

लगातार होती बारिश ने शहर का कोना कोना लबालब भर दिया है। ऐसा लग रहा है जैसे जगह जगह नाले बन गये हैं। ये बारिश सड़क के किनारे रहने वाले इन गरीब लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गई है। बेचारे गरीब अपने कच्चे घरों और तम्बुओं के टपकने से परेशान हैं। तेज होती बारिश और हवा के चलते चूल्हा जलना भी मुश्किल हो रहा है। बेचारे बच्चे भूख से बिलख रहे हैं और वो माँ मजबूर है। घर में राशन भी तो नहीं है। बड़ी अजीब सी हालत है।

अब हवा कुछ थम गई है। उस मां ने अंगीठी जला ली है और घर में रखे भुट्टे भूनने शुरू कर दिये हैं। हालांकि ये भुट्टे भी कम ही हैं लेकिन बच्चों की भूख तो शांत हो ही सकती है। बच्चे खुश हैं कि भुट्टे खाने को मिलेंगे। इधर शहर के बड़े लोग बारिश का मजा लेने के लिए कारों में बैठकर घूमने निकल रहे हैं। गरीबों के सामने से निकलने वाली कारों से पानी उनके घरों की ओर उछल रहा है और गंदगी भी। इन गरीब लोगों के आशियाने अब नाले जैसे लग रहे हैं।

अंगीठी अब सड़क के पास रखकर वो मां बैठ गई है। एक टूटा हुआ छाता बारिश से बचने को लगा लिया है। बच्चे भूखे हैं और भुट्टे की सुगंध ले रहे हैं। बच्चे भूख से बिलखते हुए खाने के लिए भुट्टे मांग रहे हैं और माँ उन्हें पुचकारते हुए चुप करा रही है। उसने बच्चों को बहलाने के लिए काग़ज़ की नावें बनाकर दी हैं जिन्हें पानी में तैरता देखकर बच्चे खुश हो रहे हैं। कुछ देर के लिए बच्चों को जैसे भूख का एहसास नहीं है। इसी बीच एक कार तेज़ी से आती है और पानी उछालते हुए चली जाती है।

बच्चों की नावें अब पानी में डूब गई हैं और यह देखकर बच्चे बुरी तरह रोने लगे हैं। नावें तैरने का खेल बंद होते ही उनका ध्यान फिर से भूख की ओर चला गया है और भुट्टों की महक उनको रोमांचित करने लगी है। वे माँ के पास जाकर भुट्टे खाने की जिद कर रहे हैं। माँ ने उनको शांत करते हुए कुछ देर में खाना देने का दिलासा दिया है। बच्चे अब लगातार टकटकी लगाए हुए माँ की ओर देख रहे हैं।

अचानक एक कार रुकती है और अंदर से कोई भुट्टे का भाव पूछता है। उस माँ ने जो भाव बताया उससे कम पर ही आदमी भुट्टे खरीदने की बात करता है। मजबूर होकर मां कम दाम पर ही भुट्टे बेच देती है।अब उसके बच्चे भूख से बेचैन हो रहे हैं। भुट्टे बिकने से वो निराश हैं। उनकी माँ उस टूटे छाते में भीगती हुई सामने वाली दुकान से राशन लेने गई है।

इधर कार में बैठकर कुछ बच्चे वही भुट्टे खा रहे हैं। उन्हें भुट्टे शायद ज्यादा अच्छे नहीं लगे, सो आधे खाकर ही सड़क पर फेंक दिये हैं। कार एक बार फिर पानी और कीचड़ उछालते हुए चली गई है। भुट्टे नाले में चले गए हैं। बच्चों को भूख बर्दाश्त नहीं हो रही है और वो भुट्टे उठाकर ले आए हैं। अब उनकी माँ राशन लेकर आ रही है। इस बीच बच्चों ने बारिश के पानी से ही भुट्टे धो लिए हैं और बड़े चाव से वो भुट्टे खा रहे हैं। उनकी माँ ने जब यह देखा तो अपनी बेबसी पर वह फूट फूटकर रोने लगी।

वह सोच रही है कि भुट्टे बेचे बिना घर कैसे चलता, राशन कैसे आता और खाना कैसे बनता, बस यही सोचकर तो उसने भुट्टे बेचने का काम शुरू किया था। बारिश में अच्छी बिक्री हो जाती है लेकिन बच्चों को यह सब कहां समझ में आ सकता है और वो भी भूख के आगे.....। मां ने बच्चों को भुट्टे केवल इसलिए ही नहीं दिये क्योंकि वो उसकी रोजी रोटी का साधन हैं और केवल भुट्टे खाने से ही सबका पेट नहीं भर सकता। वैसे भी इस बारिश में कमाने-खाने का कोई और जरिया है भी कहां? खैर जो भी हो वो निराश होकर भी हिम्मत नहीं हारी है। उसे लगता है कि यह नाला नाला जिंदगी ही उसका नसीब है और उसके परिवार को ऐसे ही जीना है। यही उसकी नियति है और सबसे बड़ी मजबूरी भी.....!!

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6 Comments

Alka jain

13-Nov-2022 10:36 AM

Nice

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Abeer

27-Oct-2022 10:23 PM

बहुत सुंदर रचना

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Pratikhya Priyadarshini

27-Oct-2022 01:31 AM

Bahut khoob 🙏🌺

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